وَلَقَدْ خَلَقْنَا الْإِنْسَانَ وَنَعْلَمُ مَا تُوَسْوِسُ بِهِ نَفْسُهُ وَنَحْنُ أَقْرَبُ إِلَيْهِ مِنْ حَبْلِ الْوَرِيدِ ﴿۱۶﴾
हमने इंसान को पैदा किया है और उसके दिल में उठने वाले वसवसों (बुरे ख़्यालों) से भी वाक़िफ़ हैं। हम उसकी रग-ए-गर्दन से भी ज़्यादा उसके नज़दीक हैं।
إِذْ يَتَلَقَّى الْمُتَلَقِّيَانِ عَنِ الْيَمِينِ وَعَنِ الشِّمَالِ قَعِيدٌ ﴿۱۷
(याद रखो!) जब दो फ़रिश्ते (हर इंसान के) दाएँ और बाएँ बैठकर (उसके अमाल) रिकॉर्ड करते हैं।
مَا يَلْفِظُ مِنْ قَوْلٍ إِلَّا لَدَيْهِ رَقِيبٌ عَتِيدٌ १८
इंसान जो भी बात कहता है, उसके पास एक तैनात निगरान (फ़रिश्ता) मौजूद होता है।
सूरह: क़ाफ़
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